Wednesday, May 28, 2014

सपने और सच का खेल-हिन्दी क्षणिकायें(sapne aur sach ka khel-three short poem's)



नींद में देखे सपने जागते ही हवा हो जाते हैं,
कभी आंखों से देखे सच भी जल्द सपना हो जाते हैं।
कहें दीपक बापू मिलते हैं रोज लोग इस जिंदगी में
उनके बिछड़ते ही  हम फिर अकेले हो जाते हैं।
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कुछ वादे उन्होंने कुछ हमने किये फिर अलग हो गये,
जिंदगी  के सफर में कई चेहरे मिले और खो गये।
कहें दीपक कौनसे दृश्य यादगार में संजोते
हम तो चलते चलते दिल से ही यायावर हो गये।
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किसी के लिये आंसू बहायें तो लोग हंसते हैं,
दिल में रखें बात तो गम के जाल में फंसते हैं।
कहें दीपक बापू वक्त के साथ मुलाकात बन जाती यादं
ज्यादा सोचें उनके बारे में ख्यालों के गड्ढे में धंसते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Monday, May 12, 2014

लोकसभा चुनाव २०१४ के परिणामों की प्रतीक्षा-हिंदी लेख(wait for result of loksabha election 2014-hindi article



      इस लेखक को 17 अप्रेल 2014 को लोकसभा चुनाव में भिंड क्षेत्र में सूक्ष्म प्रेक्षक के रूप में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आमतौर से शहर में रहते हुए अखबार पढ़ने तथा टीवी पर समाचार देखते हुए अनेक प्रकार के विचारों का क्रम चलता है पर जब चुनाव में काम करने का अवसर आता है तो सारी चौकड़ी हवा हो जाती है।  कहते हैं कि चुनाव अधिकारी को निष्पक्ष होना चाहिये। हमने अनुभव किया है कि वहां निष्पक्ष तो हर अधिकारी स्वतः ही हो जाता है क्योंकि वह पूरा समय इस बात का प्रयास करता है कि चुनाव शांतिपूर्ण हो जायें-इसलिये वह न केवल निष्पक्ष दिखता है बल्कि होता भी है।
      12 मई को नौवें दौर का चुनाव समाप्त हो गया।  अब तो परिणामों की प्रतीक्षा है।  हमारे अंदर चुनाव के दौरान तो कोई हलचल नहीं थी पर परिणामों की एक महीने की प्रतीक्षा ने उदासीनता अवश्य ला दी थी। अब अंतिम दौर समाप्त होने पर  टीवी चैनलों पर चुनाव विश्लेषण आ रहे हैं पर इनकी विश्वसीयता पर इनसे जुड़े लोग ही उठा रहे हैं।  अनेक एजेसियों ने चुनाव परिणामों के संकेत प्रचारित किये हैं पर सबसे ज्यादा सट्टेबाजों के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। क्रिकेट के बाद अब चुनाव के विषय पर उनकी सक्रियता अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े कर रही है।  बहरहाल प्रचार माध्यम सट्टेबाजों के आंकड़े भी उपयोग कर रहे हैं यह बात असहजता पैदा करने वाली है।
      चार दिनों के इस इंतजार में टीवी चैनल अपने विज्ञापनों के बीच तमाम तरह के समाचार प्रसारित करने के साथ ही  उन पर बहसें करेंगे।  देखा जाये तो चुनाव के लंबे दौर ने टीवी चैनलों के लिये विज्ञापन प्रसारित करने का ऐसा अवसर प्रदान किया कि वह आईपीएल पर कम ही ध्यान दे सके। इन चैनलों ने इस दौरान विवादास्पद बयानों का प्रसारण तथा उन पर चर्चा कर अपने विज्ञापनों का समय जमकर  पास किया।  महत्वपूर्ण बात यह कि इसमें शामिल विद्वान कहते थे कि देश के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही है पर सवाल यह है कि जिन नेताओं ने मुद्दों पर बयान दिये उसे अखबार तथा टीवी वालों ने महत्व भी कहां दिया? वह तो सनसनी और विवादों के बीच अपनी कमाई का रास्ता ढूंढते रहे।
      एक बात तय रही कि इस बार के चुनाव परिणाम कैसे भी रहें, उनसे  इस  बार  के प्रचार माध्यमोें का लोगों पर जो उनके प्रसारणों का होता है उसका अध्ययन सामाजिकं विशेषज्ञों  को अध्ययन अवश्य करना चाहिये। यह प्रचार माध्यम किस तरह मतदाओं के सामने  नायक और खलनायक गढ़कर उस पर प्रभाव डालते  हैं इस बार के चुनाव परिणामों में इसकी झलक देखने का प्रयास होना चाहिये। 16 मई को चुनाव परिणाम आने वाले हैं। हमें उनके राजनीति के सामाजिक प्रभावों का अध्ययन भी करना चाहिये।  इस बात मतदान पहले की अपेक्षा अधिक हुआ है और यकीनन इसमें आधुनिक संचार माध्यमों के प्रचार का भी योगदान है ऐसे में यह सोच अवश्य पैदा होती है कि यह प्रचार माध्यम किसी का खेल बनाने और बिगाड़ने में बहुत सक्षम है। कहने का आशय यह है कि लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम जहां पांच साल के लिये भारत के शासक का निर्णय करेंगे वरन् उनसे यह भी निष्कर्ष ढूंढने का प्रयास होना चाहिये कि  प्रचार माध्यम किस हद तक समाज को प्रभावित कर सकते हैं।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Tuesday, May 06, 2014

वफादारी का मोल-हिन्दी कवितायें(vafadari ka mol-hindi kavitaen)



हमारे मुख से निकले शब्दों का भाव सिक्कों में वह तोलते रहे,
उलझन में थे मतलब समझे नहीं, अर्थ में उदासीनता घोलते रहे।
दुनियां मे मोहब्बत के सौदागर वफा  के मायने नहीं जानते,
शूल की तरह चुभाते अपनी बात, खफा होगा कोई नहीं मानते,
अपने मतलब के लिये गैर भी सगे बनकर साथ आये,
काम बनते ही अपनी नज़रें फेरने में थोड़ा भी  नहीं शर्माये,
कहें दीपक बापू न हमने उम्मीद की न कुछ मांगा किसी से
हंसी आती है उन पर जो हमें छोडकर अपनी असलियत खोलते रहे।
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यकीन नहीं था उनका हम पर
हम भी कोई भरोसा उन पर नहीं टिकाते थे,
सबसे ज्यादा धोखा दिया उन्होंने
साथ निभाने के जो तरीके सिखाते थे।
कहें दीपक बापू सभी लोग तोलकर बात नहीं करते हैं,
रिश्तों में सिक्कों के मोल का भाव भरते हैं,
भटकते देखा है हमने ऐसे लोगों को भी
जो दूसरों को जिंदगी के रास्ते दिखाते थे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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