Sunday, September 29, 2013

शराब चीज ही ऐसी है-हिन्दी व्यंग्य कविता (sharab cheej hee aise hai-hindi vyangya kavita, A satire poem on wine)




हर रात की तरह आज भी
महफिलों में जाम छलकेंगे,
कुछ लोग मदहोशी में खामोश होंगे,
कुछ अपना मुद्दा उठाकर भड़केंगे,
जाम के पैमाने का हिसाब पीने वाले नहीं रखते
चढ़ गया नशा उनके दिमाग भी बहकेंगे।
कहें दीपक बापू
कमबख्त! शराब चीज क्या है
कोई समझ नहीं पाया,
जिसने नहीं पी वह रहा उदास
जिसने पी वह भी अपने दर्द का
पक्का इलाज नहीं कर पाया,
शराब न खुशी बढ़ाती है,
न गम कभी घटाती है,
छोड़ गयी हमें फिर भी उसके कायल हैं,
अपने घाव कभी नहीं भूलते, ऐसे हम भी घायल हैं,
सच यह है कि शराब का नशा एक भ्रम है,
नशा हो या न हो
इंसान के जज़्बातों के बहने का तय क्रम है,
पीकर कोई अपने नरक में
स्वर्ग के अहसास करे यह संभव है
मगर जिसने नहीं पी
वह भी नरक के अहसास भुला नहीं पाते,
शराब का तो बस नाम है
इंसान अपने जज़्बातों में यूं ही बह जाते,
अपने दर्द का इलाज इंसान क्या करेगा
अपने घाव की समझ नहीं दवा क्या भरेगा,
अलबत्ता, रात में खामोशी बढ़ती जायेगी
बस, पीने वाले ही नशे में नहाकर गरजेंगे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Wednesday, September 18, 2013

खबर और आग-हिन्दी व्यंग्य कविता(khabar aur aag-hindi vyangya kavita)



सामने पर्दे पर खबरची टीवी पर
खबरें ही खबरें चल रही हैं,
देखते रहो तो मानस रोऐगा
यह मानकर गोया कि पूरी दुनियां में
आग ही आग जल रही है,
अरे, जल्दी रात को सो जाओ
कुछ खूबसूरत कुछ डरावने सपने
आने को तैयार खड़े हैं
पथराई आंखें खोले बैठे हो
जिनमें नींद करवट बदल रही है।
कहें दीपक बापू
खबरे पहले से आयोजित,
बहसें हैं प्रायोजित,
कपड़े पहने घूमती नारियों की मर्यादा
कभी बाज़ार में बेचने की शय नहीं होती
पर्दे की नायिकायें बनती वही
जो कपड़ों से बाहर झांकते अंगों वाली
तस्वीर में ढल रही हैं,
खबर दर खबर से ज़माना सुधर जायेगा
यह आसरा देते प्रचार के प्रबंधक,
जिनकी नौकरी है बाज़ार के सौदागरों के यहां बंधक,
भूखे को रोटी देने की बजाय
वह उसकी खबर पकायेंगे,
शीतल हवा क्या वह बहायेंगे,
जिनके खाने की  पुड़ी
देशी घी से भरी कड़ाई में
आग पर तल रही है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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Wednesday, September 11, 2013

हिन्दी दिवस पर हास्य कविता-कार्यक्रमों की भीड़ में अकेली कविता(hindi satire poem on hindi day,hindi diwas par hasya kavita)



रास्ते में मिला फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू, आप बरसों से
हिन्दी में लिखते हो,
फिर भी फ्लाप दिखते हो,
अब हिन्दी दिवस आया है
कोई कार्यक्रम कर
अपनी पहचान बढ़ाओ,
लोग तुम्हें ऐसे ही पढ़ें
यह तुम भूल जाओ,
आजकल प्रचार का जमाना है,
हाथ पांव मारो अगर नाम कमाना है,
तुम भी करो स्थापित कवियों की चमचागिरी,
अपने से कमतर पर जमाओ नेतागिरी,
वरना लिखना छोड़ दो,
सन्यास से अपना नाता जोड़ लो।’’
सुनकर हंसे दीपक बापू
‘‘हिन्दी दिवस का प्रचार देखकर
तुम्हारा मन भी उछल रहा है,
अपने दोस्त को फ्लाप
दूसरों को हिट देखकर
तुम्हारा दिमाग जल रहा है,
लगता है तुमने ऐसे कार्यक्रमों
कभी गये नहीं हो,
इसलिये ऐसी सलाहें दे रहे हो
भले दोस्त नये नहीं हो,
हिन्दी दिवस पर लिखने के अलावा
हमें कुछ नहीं आता है,
ऐसे कार्यक्रमों में लेखन पर कम
नाश्ते और चाय के इंतजाम पर
ध्यान ज्यादा जाता है,
बाज़ार के इशारे पर नाचता है जमाना,
सौदागरों के रहम के बिना मुश्किल है कमाना,
अंग्रेजी के गुंलाम
हिन्दी से ही कमाते हैं,
यह अलग बात है कि
ज़माने से अलग दिखने के लिये
अंग्रेजी का रौब जमाते हैं,
सच यह है कि
हिन्दी कमाकर देने वाली भाषा है,
इसलिये भविष्य में भी विकास की आशा है,
चीजें बनायें अंग्रेजी जानने वाले
मगर बेचने के लिये हिन्दी में
पापड़ बेलना पड़ते हैं,
यह अलग बात है कि
हिन्दी लेखक होने पर
उपेक्षा के थपेड़े झेलना पड़ते हैं,
कार्यक्रमों की भीड़ में जाकर
हमारी लिखी रचना क्या करेगी,
अकेली आहें भरेगी,
इसलिये तुम्हारी सलाह नहीं मान सकते
भले ही तुम दोस्ती से मुंह मोड़ लो।


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Thursday, September 05, 2013

जिंदगी में बेख़ौफ़ डटे हैं-हिंदी शायरी (zindagi mein bekhauf date hain-hindi shayri or poem)



सिर पर ताज सजे
यह ख्वाहिश कभी पाली नहीं
क्योंकि जिनके आगे सिर झुके हैं
उनके सिर कटे भी हैं,
रहने के लिये कोई राजमहल हो
इसका सपना कभी देखा नहीं
क्योंकि जिन्होंने ऐशो-ओ-आराम में
बितायी जिंदगी
उनके पांव जेलों में पहुंचकर फटे भी हैं।
कहें दीपक बापू
किसी ने सच कहा है
दाल रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ
जिनकी चाल ने दिलाया उनको नाम,
चरित्र के लेकर हुए वही बदनाम,
पैसा, पद और प्रतिष्ठा कमाने के लिये लोग
पाखंड का रास्ता सरल मानते हैं,
अपने ही जाल में कभी फंसेंगे
यह कभी नहीं जानते हैं,
ख्वाब है सभी के आकाश में उड़ने के,
सपने हैं अपना नाम सितारों से जुड़ने के,
सभी के हिस्से में आकाश नहीं आता,
जिनके आया
गिरते हैं वह भी जमीन पर
एक दांत भी उनका सलामत  नहीं आता,
अपनी बात कहते रहें,
दर्द अपना यूं ही सहते रहें,
कोई न सुनता है न पहचानता है,
कम अक्लों से बहस करने से बचते हैं
क्योंकि कोई हमें शायर नहीं मानता है,
अपनी कही खुद ही सुनते हैं,
ऊंचाई पर चढ़ने के ख्वाब कभी नहंी बुनते हैं,
इसलिये जिंदगी की जंग में बेखौफ डटे हैं। 

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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